बुधवार, 29 दिसंबर 2010

अपने ही गैर होने चले

सोचा था कि अपने साथ देंगे, और दिया भी , कुछ अपनों ने टांग खींचने की कोशिश भी की, उन्हें कामयाबी भी मिली, मगर मैं अपने रास्ते चलता ही चला जा रहा हूं। कोई कितनी भी रुकावट डालने की कोशिश करे, मगर एक मस्त हाथी की चाल मैं अपनी मंजिल की ओर बढ़ता ही जा रहा हूं। जिन पर विश्वास किया अब वे ही धोखा देने लगे हैं, सवाल यह उठता है क्या यह सही है। उनकी नजरों में तो यह बिल्कुल सही है और हो भी क्यों न , सबका अपना-अपना नजरिया होता है। खैर यह सब कब तक चलता रहेगा, कभी तो सुबह होगी.....

अजय साहू

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रविवार, 5 दिसंबर 2010

यहां तक तो समझ में आता है कि राज्य सरकार के मंत्रियों के पास समय का अभाव रहता है। वे तय शुदा जगह पर कतिपय कारणों से नहीं पहुंच पाते , लेकिन नगर निगम के अधिकारी किसी जगह पर नहीं पहुंचे यह बात गले नहीं उतरती। हम बात कर है गत दिवस हमारे शहर में हुए तानसेन समारोह की। यहां मंत्रीजी के हाथों गुलाम मुस्तफा और अजय पोहनकर जी को तानसेन अलंकरण से सम्मानित किया गया। इसके बाद बारी आती है नगर निगम द्वारा सम्मान किए जाने की। यहां दोनों कलाकारों का सम्मान किसी वरिष्ठ अधिकारी या फिर जनप्रतिनिधि से कराया जाना चाहिए था लेकिन नगर निगमें अधिकारियों के पास इतना समय नहीं था कि दोनों कलाकारों का सम्मान करें। सो निगम के चतुर्थ श्रेणी क्र्लक से दोनों कलाकारों का सम्मान करा दिया। ये क्र्लक महोदय निगम के जनसंपर्क शाखा के रमेश झा हैं। अब सवाल यह है कि दोनों वरिष्ठ कलाकारों का यह सम्मान है या फिर अपमान सोचने वाल बात है।
ajay sahu
gwalior
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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

लो आ गया फैसला

साठ साल से कोर्ट में लंबित फैसला गुरुवार को आ ही गया, अयोध्या मामले में इस फैसले का लोगों को बड़ी बेसब्री से इंतजार था। जो भी हुआ ठीक हुआ, हमें सब्र्र से काम लेना चाहिए। शांति और सद्भाव बनाए रखना ही हमारा धर्म है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सबसे पहले हम सच्चे हिंदुस्तानी हैं। धर्मों में तो हम बाद में बंटे हैं। हमें माननीय न्यायालय के निर्णय का सम्मान करना चाहिए। फैसले का सभी संगठनों ने स्वागत किया है।

शनिवार, 11 सितंबर 2010

सद्भावना की मिसाल.


आपसी सद्भाव का त्योहार ईद और गणेश चतुर्थी का एक दिन अपने आप में संयोग ही कहा जाएगा, ऐसा संयोग काफी सालों बाद आया है। इधर मुस्लिम बंधु एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद दे रहे थे वहीं दूसरी तरफ गणपति बप्पा मोरया... से शहर की गलियां गूंज रही थी, एक ही दिन दो त्योहार का होना अपने आप में अनूठी बात है। दोनों त्योहार धूमधाम से मनाए गए । मुस्लिम बंधु भी रोजे के साथ-साथ गणेश प्रतिमा भी स्थापित करते हैं। ग्वालियर शहर के माधौगंज क्षेत्र में टेलरिंग व्यवसाय करने वाले मुस्लिम बंधु बड़े हर्षोल्लास से न केवल गणेश प्रतिमा स्थापित करते हैं बल्कि यहां होने वाले आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं। आपसी सद्भावना की यह अकेली मिसाल नहीं है, कई मजारों पर दोनों त्योहार एक ही दिन होने पर पौधरोपण कार्यक्रम किया गया। इसे कहते हैं आपसी सद्भावना की मिसाल.... जय हिंद
अजय साहू

शनिवार, 4 सितंबर 2010

सम्मान या फिर अपमान


टीचर्स डे यानि शिक्षकों का दिन, हो भी क्यों न आखिर वे समाज को नई दिशा देने का काम करने के साथ-साथ होनहारों को उनके मुकाम तक पहुंचाने में एक महती भूमिका जो निभाते हैं। यहां सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में आज के स्टूडेंट्स शिक्षकों का सम्मान करते हैं। अगर तह तक जाएं तो नई बातें निकलकर सामने आएंगी। स्टूडेंट्स को बेहतर दिशा देने की कोशिश करने वाला टीचर्स आखिर उनका दुश्मन बन ही जाता है। कारण है सही दिशा देने की कोशिश, लेकिन आज का स्टूडेंट्स टीचर्स की इन सब बातों को फिजूल ही मानता है, जब टीचर्स सही राह दिखाने का प्रयास करता है तब शुरू होता विरोध का दौर, यह विरोध लगातार बढ़ता रहता है, साल में एक बार आने वाले टीचर्स डे पर स्टूडेंट्स टीचर्स का सम्मान तो करते हैं लेकिन मजबूरी या बेमन से। स्कूल में पढ़ाई करना है तो टीचर्स डे पर उनका सम्मान करना ही पड़ेगा। इस दिन क्या यह उनका वाकई में सम्मान है या अपमान, सोचने वाली बात है। विचार मंथन करना होगा।
जय हिंद
अजय साहू

आखिर रच ही दिया इतिहास

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने लगातार चौथी बार कांगे्रस अध्यक्ष बनकर सारे कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए। पार्टी के करीब १२५ सालों के इतिहास को अगर देख जाए तो सोनिया ही लगातार चौथी बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उल्लेखनीय है कि सोनिया ने वर्ष १९९८ में राजनीति में कदम रखा था, उस समय पार्टी के हालात ठीक नहीं थे। खैर सोनिया गांधी जी को ढे सारी बधाइयां।
अजय साहू

शनिवार, 14 अगस्त 2010

हमें सोचना होगा


सभी लिक्खाडों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। सवाल मन में है क्या वाकई हम स्वतंत्र है? अगर है तो हम वह सब कुछ क्यों नहीं कर पाते जो हमारे मन में होता है। इससे जाहिर है कहीं न कहीं हम गुलामी जंजीरों में जकड़े हुए हैं। आखिर वे कौन से कारण हैं जो हमें मनमानी करने से रोकते हैं। हमें इसकी तह तक जाना होगा, मन में उठ रहे सवालों का हल भी हमारे पास है, बस जरूरत है आत्ममंथन की। हमें सोचना होगा, विचारना होगा।


जय हिंद

अजय साहू

शनिवार, 7 अगस्त 2010

आखिर बचा लिया मंत्री जी को

आखिर बचा लिया मंत्री जी को
ये है अफसरशाही, इंदौर के बहुचर्चित सगुनी देवी जमीन घोटाले में बुरी तरह फंसे मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को साफ बचा लिया गया। इस मामले में विधायक रमेश मेंदौला समेत १७ लोगों को दोषी माना है, लेकिन एफआईआर में न तो कैलाश विजयवर्गीय का कहीं जिक्र है, और न ही उन्हें आरोपी माना, है न खास, मंत्रीजी को साफ-साफ बचा लिया गया। खैर जनता तो सब कुछ जानती है उससे कुछ नहीं छिपा, लोगों का कहना है कि इतना सब कुछ होने के बाद भी मंत्रीजी का नाम तक नहीं है, है न आश्चर्य,मंत्री जी ने अपने बल पर खुद को बचा ही लिया।
ajay sahu

मंगलवार, 27 जुलाई 2010

भुला दिए सारे वादे



कारगिल में युद्ध करते-करते देश के लिए शहीद हुए जवानोंं के परिजनों को दिए गए आश्वासन आज तक पूरे नहीं हो सके हैं। मुरार घोसीपुरा निवासी शहीद नरेन्द्र सिंह राणा के परिजन आज भी व्यथित हैं, १९९९ में कारगिल युद्ध के समय देश की रक्षा करते समय शहीद हुए सूबेदार नरेन्द्र सिंह राणा की पार्थिव देह जब मुरार पहुंची , तब शहरवासियों के अलावा कई राजेनता भी पहुंचे और कर दिए बड़े- बड़े वादे, सरकार ये करेगी, वो करेगी, लेकिन उन वादों का क्या हुआ, घटना के ११ साल बीत जाने के बाद भी किसी ने उनकी सुध तक नहीं ली, घर में नरेन्द्र की विधवा पत्नी से जब बात की जाती है तो उनके आंसू थमने का नाम ही नहीं लेते। तीन बेटों में से किसी की आज तक नौकरी तक नहीं लगी। ऐसे में उनका क्या होता होगा सोचने वाली बात है। खैर शहीदों को मेरा कोटि-कोटि प्रणाम....
 अजय सहू
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रविवार, 25 जुलाई 2010

हाय री बिजली


हाय री बिजली, लोग अब बिजली को कोसने लगे हैं, नियमित बिल भरने के बाद भी पर्याप्त बिजली नीं मिल पा रही है। बिजली आधारित कामकाज ठप हो चुके हैं। अब तो लेग कहने लगे हैं कि दिग्गी सरकार में लोग अच्छे थे, कम से कम कुछ समय के लिए बिजली तो मिलती थी। शिवराज सरकार में तो बिजली मिला दूर की बात, संबंधित विभाग के अधिकारी सुनने को राजी ही नहीं है। एक बार बिजली चली जाए, कब तक आएगी इसका जबाव किसी भी अधिकारी के पास नहीं है। कॉल सेंटर के फोन घनघनाते रहते हैं कोई नहीं है। सुनवाई के लिए, रविवार को ही ग्वालियर के गोलपहाडिया क्षेत्र में बिजल नहीं आने पर लोगों ने बिजलीघर के घेराव कर दिया। वहीं अंचल के श्योपुर में भी आक्रोशित किसानों ने बिजली कंपनी के अधिकारियों पर हमला बोल दिया। इसमें नौ लोग घायल हुए है। खैर जो भी हो शिवराज मामा को तो अपनी सरकार बचाने से मतलब, उन्हें जनता की मूलभूत सूविधाओं से कोई सरोकार नहीं।


अजय साहू

इसे कहते हैं अक्ल


इसे कहते हैं अक्ल,पचमढी के मैकेनिक जावेद ने हार्ले जैस हूबहू जैसी बाइक बनाकर न केवल अपने शहर बल्कि प्रदेश का नाम रोशन किया है। मैकेनिक जावेद की खासियत यह है कि यह कारनामा उसने कोई मशीन से नहीं बल्कि अपने हाथों के हुनर से किया है। हर युवा की ख्वारइश होती है कि वह ३५ लाख रुप कीमत की हार्ले डेविडसन की बाइक चलाए, लेकिन यह सपना सपना बनकर ही रह जाता है, लेकिन पचमढी के मैकेनिक जावेद ने मात्र १ लाख ४० हजार रुप में यह सपना पूरा कर दिखाया है। उसके द्वारा बनाई गई बाइक से लोग हार्ले डेविडसन की बाइक चलाने का पूरा कर सकते हैं। खैर जावेद की इस उपलब्धि पर बधाई।


अजय साहू

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

इसे कहते हैं राजनीति

वाह भाई शिवराज इसे कहते हैं राजनीति, सबको चौंकाने वाला बयान दिया, पक्ष विपक्ष के सभी नेता चौंके, विधानसभा सत्र में हंगामा भी हुआ। सब लाल-पीले हुए, बयान के तीन दिन बाद जब भाई शिवराज ने हुंकार भरी तो सब चुप हो गए। भाई साहब उल्टे बोले.. कौन है जो मुझे पद से हटाए, डरी है कांगे्रस , उसके पास कोई मुद्दा नहीं है। खैर जो भी हो, रानजीति कुछ है ही ऐसी... भाई ने अपनी पीड़ा बयां तो कर दी लेकिन यह नहीं सोचा कि इसका असर क्या होगा। भाई ने जब तीन दिन बाद जब हुंकार भरी और बदल गए सुर ...


अजय साहू

९९२६२८५१००

सोमवार, 19 जुलाई 2010

डांस के जरिए करना चाहती हैं चैरिटी


गरीब बच्चों के लिए चैरिटी शो के माध्यम से मदद करने और उनके टैलेंट को प्लेटफॉर्म प्रदान करने की हसरत रखने वाली भरतनाट्यम नृत्यांगना गरिमा सिंह तोमर ने बीस वर्ष की उम्र में ही अपनी नृत्यकला से एक अलग मुकाम बना लिया है। इस छोटी सी एज में ही उन्होंने लगभग पांच सौ अवार्ड प्राप्त कर लिए हैं। तीन साल की उम्र में माता के जागरण से डांस की शुरूआत करने के साथ ही उन्होंने स्कूल स्टेज पर कई शानदार परफॉर्मेंसेज दीं। आठ साल की उम्र में उन्हें प्रतिभा अवार्ड से सम्मानित किया गया। वे भरतनाट्यम पर अधिक फोकस करने के लिए श्रीराम कला केन्द्र, दिल्ली से पिछले तीन सालों से प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हैं।

बारह वर्ष की उम्र में मप्र को रिप्रेजेंट करते हुए मालवा कला एकादमी की प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया। पंद्रह वर्ष की उम्र में कैंसर पीडि़त बच्चों के लिए लगातार दो घण्टे की बेहतरीन परफॉर्मेंस देकर उन्होंने इलाज के लिए बड़ी राशि इकट्ठा की। वह अपनी कला के बलबूते पर तानसेन अलंकरण, ग्वालियर जेसीआई, ग्वालियर गौरव और प्रभातरत्न जैसे शहर के प्रतिष्ठित अवार्ड प्राप्त कर चुकी हैं। सिर्फ शहर में ही नहीं वह अपने हुनर की चमक आगरा, भोपाल, इंदौर, डबरा और मुरैना में भी बिखेर चुकी हैं। बहुमुखी प्रतिभा की धनी गरिमा ने क्लासिकल डांस फॉर्म के अलावा वेस्टर्न, फोक और सेमिक्लासिकल डांस में भी महारत हासिल कर ली है। वह अपनी मां माधवी सिंह तोमर को अपना आदर्श मानती हैं। भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं कि यदि अपनी नृत्यकला के माध्यम से गरीब बच्चों की मदद के कुछ कार्य कर सकूं तो यह सबसे अच्छा होगा।
garima shrivastava
9826063112

रविवार, 18 जुलाई 2010

कुछ कर गुजरने की ललक हो तो सब कुछ संभव

पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, ऐसा ही कुछ मास्टर हितेन्द्र श्रीवास्तव के साथ हुआ, तीन साल की उम्र में कटोरी-चम्मच से निकाली गई धुन ने आज उसे तबला वादक बना दिया,जो देश के कई शहरों में प्रस्तुति देकर शहर व परिवार का नाम रोशन कर रहा है।

रामकृष्ण आश्रम स्कूल में कक्षा आठ में पढऩे वाला हितेन्द्र बचपन की याद ताजा करते हुए बताता है कि तबला वादन की कला उसे विरासत में नहीं मिली, तीन वर्ष की उम्र में टीवी पर गाने का दृश्य आते देख खाना खाते हाथ कटोरी-चम्मच बजाने लगा, इससे निकली धुन सुन माता-पिता को हुनर समझते देर नहीं लगी। उनके प्रोत्साहन की बदौलत ही वह आज इस मुकाम तक पहुंच सका है। चार वर्ष की उम्र में प्रशिक्षण का सिलसिला शुरू हुआ, जो आज भी जारी है।

तबला वादन के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर शहर का नाम रोशन करने वाला हितेन्द्र का सपना विख्यात तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन की तरह नाम कमाने का है, उसका कहना है कि उस मुकाम पर वह अवश्य पहुंचेगा, इसके लिए हर समय परिजनों का सहयोग मिलता है। १२ वर्षीय हितेन्द्र अभी तक देश के कई शहरों में प्रस्तुति दे चुका है, इनमें ग्वालियर के अलावा आगरा, कानपुर, भोपाल, टीकमगढ़, नई दिल्ली, लखनऊ आदि शामिल हैं। वहां लोगों द्वारा खूब सम्मान मिला, वहीं गत वर्ष अपने ही शहर ग्वालियर में बैजाताल पर हुए हेरिटेज महोत्सव में दी गई प्रस्तुति को हितेन्द्र अपने आप में अभी तक का सबसे बड़ा सम्मान मानता है।

बीते माह राष्ट्रीय बालश्री सम्मान के चयन के लिए आयोजित प्रतियोगिता में भाग ले चुके हितेन्द्र का कहना है कि अगर व्यक्ति में कुछ करने की ललक हो तो वह बहुत कुछ कर सकता है, इसके लिए न तो उम्र आड़े आती है और न ही धन। एक सवाल के जवाब में उसने कहा कि पढ़ाई के साथ रोजाना दो घंटे रियाज का समय निकाल लेता है। प्रशिक्षक मुकेश सक्सेना से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। उसकी पुलिस सेवा में जाकर समाज सेवा करने की भी तमन्ना है।

मास्टर हितेन्द्र के पिता मनोज श्रीवास्तव बताते हैं कि हितेन्द्र का हुनर बचपन में ही दिखाई दे गया था, चार वर्ष की आयु से प्रशिक्षण दिलाना शुरू किया, आजकल वह रोजाना दो घंटे रियाज करता है। इसी का नतीजा है कि आज हितेन्द्र तबला वादन के क्षेत्र में शहर का नाम रोशन कर रहा है।
ajay sahu
09926285100

शुक्रवार, 16 जुलाई 2010

डर का समझौता

बेला गांव में हुई दबंगों की गोली से हुई मौत के बाद जिस तरह से घटनाक्रम बदला, मध्यप्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनूप मिश्रा का इस्तीफा, बयानों में बार-बार बदलाव, कुशवाह समाज के लोगों का धरना जारी था। घटना के कुछ दिनों बाद बुधवार की शाम अनूप मिश्रा का मुख्यमंत्री से मिलना और उसी रात को प्रदेश के गृहराज्य मंत्री नारायण सिंह कुशवाहका ग्वालियर आना और फिर देर शाम बैठक और इसमें समझौता। इधर समाज के लोगों का तमाम मांगों को लेकर धरना तो उधर बाल भवन में प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी मे पीडि़त परिवार के सदस्य और नारायण सिंह कुशवाह थे। सब कुछ ठीक हो गया। पीडि़त परिवार भी कोर्ट के फैसले की बात कहकर मान गया और हो गया बहुचर्चित बेला गांव मामले का पटाक्षेप। यहां ढेर सारे सवाल मन में हैं? आखिर एक ही रात में अचानक क्या हुआ कि पूरा मामला ही सुलट गया। किसी को किसी से कोई गिला शिकवा नहीं था। उधर धरने पर बैठे समाज के लोगों को पता नहीं चला कि राजीनामा हो गया। लोगों में मन में तमाम सवाल थे। लोगों का तो यहां तक कहना था कि विधानसभा सत्र में विपक्ष सरकार को घेरने का मन बना चुका है, ऐसे में कहीं विपक्ष भारी न पड़ जाए, सो मामले का पटाक्षेप होना जरूरी था। पीडि़त परिवार की सभी मांगे मान ली गईं। खैर जो भी हुआ हो मामला सुलट ही गया। इसमें जीत जनता की मानें या फिर अनूप मिश्रा की, सोचने वाली बात है। हां एक बात और जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भी अपने आकाओं की खूब निभाई, ऐसी हलकों में चर्चा है।

ajay sahu
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गुरुवार, 15 जुलाई 2010

चलो समाज को नई दिशा दें

जिन लोगों को समाज के लोगों ने अपनी जमात से दूर कर रखा है, वे ही समाज को नई दिशा देने की कोशिश में लगे हुए हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं अमृतसर से डबरा आकर बसीं किन्नर शारदा बाई। जो बिना किसी स्वार्थ के समाज में मानवता की अलख जगा रही हैं। उनके इस कार्य में क्षेत्र के एक वर्ग का सदा सहयोग मिलता रहता है।

बहनजी के नाम से मशहूर डबरा के गुप्तापुरा स्थित हंस महल में रहने वाली किन्नर शारदा बाई बताती हंै कि अब तो डबरा ही कर्मभूमि, तपोभूमि है। यहां के लोग ही मेरे अपने हैं, उनकी खुशी में ही मेरी खुशी है, शहर में ऐसा कोई आयोजन नहीं होता, जिसमें वह बढ़-चढ़कर हिस्सा न लेती हों।

कारगिल युद्ध के समय रिलीफ फंड की बात हो या फिर बाढ़ पीडि़तों की सहायता की, लोगों को प्रेरित कर राशि इकठ्ठी कर मुख्यमंत्री के नाम ड्राफ्ट देने में हर समय आगे रहती हैं। उनका कहना है कि इस काम में मुझे अगर भीख भी मांगनी पड़ेगी तो पीछे नहीं हटूंगी।

हायर सेकंडरी पास शारदा बाई अभी तक १६ बच्चों का लालन-पालन कर उनका विवाह करा चुकी हैं, इनमें ११ लड़कियां व पांच लड़के शामिल हैं। ये बेटे-बेटियां समय-समय पर हालचाल जानने आते हैं। इसके अलावा ३१ ऐसे लड़कियों का विवाह कर चुकी हैं जो निराश्रित थीं।

इस कार्य में उनकी उत्तराधिकारी सोनू पूरी मदद करती है। अपनी गुरु के पद चिह्नों पर चलने वाली स्नातक सोनू का मानना है कि व्यक्ति अगर सक्षम है तो उसे जरूरतमंदों की सहायता अवश्य करना चाहिए, लेकिन समाज में ऐसे लोग कम ही मिलते हैं।

फकीरी गद्दी को ही हद्य परिवर्तन का कारण मानते हुए ५२ वर्षीय शारदा बाई बीते दिनों की याद ताजा करते हुए बताती हैं कि उनका संबंध जमींदार परिवार से है सो शुरू से धन की कमी रही नहीं, १९७१ में यहां आने के बाद भी कोई खास अंतर नहीं आया। लेकिन वर्ष १९७६ में सिमरिया टेकरी के पास हुृए हादसे में घायल अनजान एक युवक की उस समय तक देखभाल की, जब तक उसे होश न आ गया। बाद में उसके पते नारनौद हरियाणा पर सूचित किया, तब उसके परिजन आए और उसे ले गए। उन दिनों इस कार्य से आत्मा को जो शांति महसूस हुई वह बयां नहीं कर सकती। बस, यहीं से मन में मानवता जागी और चल पड़ीं समाज में अलख जगाने। अगर सभी लोग थोड़ा भी सहारा बनें तो देश से गरीबी दूर हो जाएगी, मगर ऐसे लोग कम ही मिलते हैं।

मूलत: अमृतसर की रहने वाली शारदा बाई का कहना है कि दाना पानी ही मुझे डबरा ले आया, यहां लोगों से मिलने के बाद आंखों से पट्टी हटी और समझ में आया कि जीवन क्या होता है। तब से लेकर अब तक जो भी दुखी-गरीब मिला, उसे स्वीकार किया।
ajay sahu
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सोमवार, 12 जुलाई 2010

चबूतरा..

चबूतरा.. कहने को तो एक छोटा सा नाम लेकिन काम बहुत बड़े, कई मायने, इसका उपयोग कहीं भी किया जा सकता है। खेल में बात में फिल्म में और न जाने कहां-कहां। चबूतरा .. चबूतरे के ऊपर चबूतरा और चबूतरा। मकान के आगे छोड़ी जाने वाली जगह चबूतरा कहलाती है। चबूतरा को लोग अच्छा मानते हैं। इसके पीछे का कारण जीवन से मरण तक चबूतरा ही काम आता है। लेकिन यह अतिक्रमण की श्रेणी में है।

वाह बाबा वाह...

छा गए कुछ ही दिनों में, इसे कहते है कुछ ही दिनों में शोहरत कमाना। गर्त में छिपे ऑक्टोपस को कौन जानता था, सिवाए विज्ञान की चंद पुस्तकों में इसका जिक्र अध्यापक करते थे। फीफा विश्व कप हुआ, वल्र्ड के देशों की टीमें खिताब हासिल के लिए मैदानों में उतरीं, लोगों ने पैसा कमाने के लिए युक्ति निकाली और कर डाला कुछ नया। बस फिर क्या था मामूली सा जलीय जीव ऑक्टोपस कुछ ही दिनों में दुनिया का सबसे तेज भविष्य वक्ता बन गया। चारों ओर बाबा ही बाबा, ऑक्टोपस बाबा, वह भविष्यवाणियां करता गया, सच होती गईं और हद तो तब हो गई जब फीफा वल्र्ड कप के फाइनल मुकाबले में स्पेन और नीदरलैंड के बीच रोमांचक मुकाबला चल रहा था, इधर बाबा साहेब गहरी नींद में थे। लोग उनके कहे अनुसार दांव खेल रहे थे। बस रविवार की रात तो बाबा और छा गए जब उनकी भविष्यवाणी ने स्पेन को विश्व विजेता बना दिया। यह बात अलग है कि मैदान पर खिताब हासिल करने के लिए खिलाड़ी जी जान लगा रहे थे मगर लोग तो बाबा के कहे अनुसार अपना काम रहे थे। लोगों ने करोड़ों रुपए इधर-उधर कर दिए। खैर जो भी हो,स्पेन जीता सो जीता, लेकिन छोटा जलीय जीव ऑक्टोपस दुनिया का सबसे बड़ा भविष्य वक्ता बन गया। इसे कहते हैं वाह री किस्मत...

राई के दाने पर शिव परिवार

आपको देखने में भले ही परेशानी हो, लेकिन शैली को राई के दाने पर भगवान शिव और उनके पुत्र श्रीगणेश की प्रतिमा बनाने में सिर्फ चंद मिनट ही लगते हैं। यह उसकी वर्षों की लगन और मेहनत का परिणाम है। विश्व की सबसे छोटी प्रतिमा बनाने का दावा करने वाली शैली सोनी की तमन्ना इस क्षेत्र में आगे जाकर विश्व भर में नाम कमाने की है।

सराफा बाजार में रहने वाली शैली सोनी ने बताया कि मिट्टी और मोम के गणेश और शिव परिवार को बनाने का सपना बचपन से था, धीरे-धीरे मेहनत की और सपना साकार होता नजर आने लगा। अब हालत यह है कि चावल का दाना हो या फिर राई का दाना वह किसी पर भी भगवान गणेश और शिव का आकार मिनटों में दे रही है।

अब तक अगिनत मूर्तियां बना चुकी शैली का कहना है कि यह हुनर उसे विरासत में मिला है, परिवार में सोने का काम बारिकी से होता था। सो, सीखने में कोई दिक्कत नहीं हुई। अब तो बस यही तमन्ना है कि इस हुनर के जरिए विश्व में शहर व देश का नाम रोशन हो, इसके लिए लगातार प्रयास जारी है।

गणपति भगवान को इष्ट मानने वाली शैली सोनी राई के एक दाने पर शिव परिवार बना चुकी है। इसके अलावा मिट्टी और मोम को अनेक बार भगवान का आकार दे चुकी है। प्रतिमा निर्माण के लिए वह कई पुरस्कार तक प्राप्त कर चुकी है।

फाइन आर्ट कालेज की प्रथम वर्ष की छात्रा शैली बताती है कि अपने हुनर की पहचान उसे उस समय हुई, जब २२ सितंबर २००७ को महाराज बाड़ा स्थित टाउन हाल में आयोजित कार्यक्रम में पुरस्कार मिला था। इसके बाद भोपाल में उसके द्वारा बनाई गई प्रतिमाओं की लगी प्रदर्शनी में जब मुख्य अतिथि के हाथों पुरस्कार मिला तब जो खुशी मिली उसे बयां करने के लिए शब्द नहीं हैं। इसके बाद तो कई सामाजिक संस्थाओं ने पुरस्कृत किया। उसका कहना है कि उस समय बड़ी खुशी होती है, जब उसके साथ माता-पिता का नाम भी रोशन होता है। दिल्ली के रामलीला मैदान में लगी प्रदर्शनी को उपस्थित अतिथियों ने काफी सराहा।

श्याम व राधा सोनी की होनहार पुत्री शैली ने विश्व की सबसे छोटी मूर्ति बनाने का दावा करते हुए लिम्का बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में नामांकन के लिए आवेदन किया है। फरवरी में उसका नाम इस रिकार्ड में शामिल कर लिया जाएगा, ऐसा शैली का मानना है।
ajay sahu
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रविवार, 11 जुलाई 2010

क्या हो गया है शहर को


मेरे ग्वालियर को अचानक क्या हो गया है, अपराधियों के मन से कानून नाम का खौफ खत्म सा होता रहा है। पहले एक हत्या होती थी तो पूरा शहर कांप जाता था और काफी दिनों तक लोगों के मन में भय रहता था मगर अब तो दिन दहाड़े गोली मार दी जाती है और पुलिस कुछ नहीं कर पाती। यही कारण है कि आम आदमी का जीना मुहाल हो गया है। लोग रात के समय घरों से निकलने में काफी सोचते हैं, महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं। लोग कहते हैं पहले अपराध तो था लेकिन कम, अब तो अति हो गई है। लगता है कि अपराधियों के मन में पुलिस का कतई खौफ नहीं है। पुलिस मात्र खानापूर्ति कर रही है। उन्हें तो बस धनउगाही से मतलब होता है। पुलिस के कुछ अधिकारी सिर्फ मलाईदार जगहों पर जमने में रुचि दिखाते हैं। कुल मिलाकर अब तो शहर में लूट, हत्याएं आम बात हो गई है।

शनिवार, 10 जुलाई 2010

इसे कला कहें या हाथों का जादू

एक ओर चिकित्सा ज"त के नए आयाम और दूसरी ओर दूसरी ओर प्राचाीन परंपराओं से असाध्य रो"ों का उपचार। विज्ञान और अनुमान के बीच चलने वाले आरोप-प्रत्यारोपों के दौर में आज एक अनपढ़ व्यक्ति हजारों लो"ों को असाध्य रो"ों से उपचार दिला रहा है। मामला चाहे रीढ़ की हड्डïी के दर्द का हो या फिर कमरदर्द का। "ठिया का हो या साइट्रिका का। सबमें उसका हुनर काम आ रहा है। बस घुटने से की "ई मसाज और कुछ देसी दवाएं और रो" से काफी कुछ निजात। यह शख्स है राधेलाल कुशवाह घुटने से मालिश करके शरीर के किसी भी हिस्से का दर्द दूर करने का दावा करते हैं। राधे के पास आने वाले मरीज भी चर्चा के दौरान इस बात को स्वीकार करते हैं कि उन्हें यहां आने से काफी फायदा हुआ है। पिता से विरासत में मिली इस विद्या के बारे में राधे लाल बताते हैं कि इस विधि और ज्ञान में बहुत कुछ है,बस जररूत है इसके सदुपयो" की। इलाज के दौरान मरीज के शरीर पर घुटनों से मसाज करने से उसकी बीमारी में न केवल लाभ होता है बल्कि पूर्णत ठीक हो जाता है। इतना ही नहीं बल्कि मरीज केवल दर्द वाले हिस्से का नाम ले और राधेलाल अपना घुटना फेरकर दर्द का स्पॉट भी बता देता है। "णेश भ"वान को प्रेरणा स्त्रोत मानने वाले राधेलाल बताते हैं कि मुझे खुद भी नहीं पता कि यह चमत्कार होता कैसे है। बस मरीजों को ठीक करने का सिलसिला चल रहा है। कंपू स्थित उसरेटे सेन समाज "णेश मंदिर एवं आवास पर सालों से मरीज देख रहे हैं, इन दिनों प्रतिदिन बीस मरीज आते हैं। प्राइमरी तक शिक्षा प्राप्त राधेलाल पहले अपने पिता के साथ ऐसे लो"ों की मसाज देखा करता था। इसी बीच पिता ने उसे काम सिखाना शुरू कर दिया। पिता के जाने से पहले ही राधे ने खुद को इस विद्या में पारं"त कर लिया। अब वह अपना यह ज्ञान पत्नी और ब"ाों को भी सिखा रहा है ताकि बढ़ती मरीजों की संख्या के बीच वे राधे की मदद कर सकें। राधेलाल की तमन्ना है कि ताउम्र मरीजों की सेवा कर उन्हें ठीक कर सकें।
ajay sahu
gwalior
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लोगों तक पहुंचे टप्पा गायकी

शहर में जन्मी एक कलाकार टप्पा गायकी को देश विदेश में पहचान दिलाने के प्रयास में लगी है। इस कार्य में उसे काफी हद तक सफलता मिली है और यही कारण है कि विदेश में उसकी गायकी को सराहा जा रहा है।


टप्पा गायकी के क्षेत्र में पहचान रखने वाली शाश्वति मंडल पॉल ने बताया कि टप्पा गायकी आम लोगों तक पहुंच सके, इसके प्रयास लगातार जारी हैं। हाल में उनकी एलबम शाशा टप्पा ए जर्नी का लंदन में जारी हुई है, इसे लंदन की प्रसिद्ध सांग लाइंन्स वल्र्ड म्यूजिक अवार्ड 2009 में दो श्रेणी बेस्ट न्यू कमर एवं बेस्ट आर्टिस्ट के लिए नामांकित किया है। इसके अलावा इस एलबम को सांग लाइन्स पत्रिका व हालैंड रेडियो द्वारा 5 स्टार रैकिंग प्रदान किया है।

ग्वालियर में पली गायिका शाश्वति का कहना है कि सफलता में मां कमल मंडल व मामा श्रीराम उमड़ेकर का सहयोग है। इसके अलावा बाला साहब पूंछ वाले से इस विधा में प्रशिक्षण प्राप्त किया। वे कहती हैं कि अगर व्यक्ति में कुछ करने का हौसला हो तो उसके लिए असंभव नाम का कोई शब्द है ही नहीं। बस प्रोत्साहित करने की जरुरत है।

टप्पा गायकी को देश विदेश में फैलाने में लगी शाश्वति कहती हंै कि उनके द्वारा देश के लगभग सभी शहरों में प्रस्तुति दी जा चुकी है लेकिन पुणे में आयोजित सवाई गर्धव समारोह में दी प्रस्तुति आज भी याद है। एक प्रश्न के उत्तर में कहती हैं कि यूं तो कई पुरस्कार मिले लेकिन स्कूली दिनों में मिला मप्र कोकिला सम्मान आज भी याद है। इसके अलावा कई....

वर्ष 1988 में टप्पा सीखने के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्राप्त कर चुकी शाश्वति कहती हैं कि विदेशों में जहां इस विधा को महत्व मिल रहा है लेकिन अपने देश में इस विधा को जो महत्व मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है। होने वाले कार्यक्रमों में नामी कलाकारों को प्रस्तुति देने के लिए बुलाया जाता है जबकि हर कलाकार को मौका मिलना चाहिए ताकि वह अपनी कला को प्रस्तुत कर सके।

बीते समय की याद ताजा करते हुए शाश्वति ने बताया कि घर में शुरू से संगीत का माहौल था, मां कमल मंडल संगीत सीखने पर जोर देती थी, सिर्फ रियाज चलता था। यही कारण है कि वे आज इस मुकाम तक पहुंच सकी हैं।

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

चांद तारों को छूने की आशा

अगर कुछ कर दिखाने की जिद हो, तब न तो शारीरिक विकृतियां बाधा बनती हैं और न ही धन का अभाव। व्यक्ति के लिए कुछ भी संभव है। कुछ ऐसी ही संभावनाएं प्रदेश की विकलांग तैराकी टीम में देखी जा सकती हैं। टीम में विक्रम, एकलव्य पुरस्कार प्राप्त ऐसे खिलाड़ी भी हैं, जो कई स्वर्ण पदक लेकर देश का नाम रोशन कर चुके हैं। ये वे लोग हैं,जिन्हें समाज ने अपने से दूर रखा। लेकिन एक जिद ने ऐसा कर दिया कि पूरा समाज उनके साथ हो लिया। टीम में लगभग सभी खिलाड़ी ऐसे हैं,जो राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुके हैं।


दूध का व्यवसाय करने वाले विक्रम पुरस्कार प्राप्त टीम के कप्तान रामवरन पाल बताते हैं कि पड़ोसी के ताने की बदौलत ही आज वह इस मुकाम तक पहुंचे। सुपावली गांव निवासी रामवरन थाटीपुर स्थित रामकृष्ण आश्रम में रहकर पढ़ाई के साथ-साथ तैराकी करने लगे, देखते ही देखते अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन गए। दो अंतरराष्ट्रीय व नौ राष्ट्रीय खेलों में कई पदक प्राप्त कर चुके हैं । इंग्लिश चैनल पार करना ही उनकी तमन्ना है।

वर्ष २००७ में जूनियर वर्ग में एकलव्य पुरस्कार प्राप्त रजनी झा ने बताया कि पहले तैराकी सिर्फ शौक के लिए करती थी लेकिन धीरे-धीरे यह जुनून बन गया, अब इसके बिना मन नहीं लगता। ताइवान , मलेशिया और जर्मनी में अपने खेल का लोहा मनवा चुकी रजनी कहती है, हम लोग सामान्य खिलाडिय़ों से बेहतर प्रदर्शन कर पदक लाते हैं लेकिन जो सुविधाएं हमें मिलनी चाहिए, उससे वंचित रह जाते हैं। विकलांगता अभिशाप नहीं है, सहयोग मिले तो चांद को छू सकते हैं।

११ स्वर्ण पदक लेकर नाम रोशन करने वाले समीर के मुताबिक, हम अपने आप को कमजोर नहीं मानते, वे कहते हैं कि यह सही है कि हम विकलांग हैं लेकिन उन्हें किसी की हमदर्दी नहीं चाहिए। बीए में अध्ययनरत विनीता पाठक कहती है पढ़ाई के कारण अभ्यास के लिए समय नहीं मिल पाता, अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेकर देश का नाम रोशन करने का सपना है।

इसी तरह टीम के अन्य सदस्य विनोद जाटव, शरीफ खां, जगदीश, संगीता राजपूत आदि ने कई प्रदेश व राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अनेक पदक प्राप्त किए हैं। इन सभी का मानना है कि अगर व्यक्ति में जुनून हो तो कुछ भी असंभव नहीं है।

इन खिलाडिय़ों के सामने समस्या यह है कि खेल विभाग इन्हें खिलाड़ी ही नहीं मानता, मदद तो दूर की बात है। पैरालिंपिक स्वीमिंग फेडरेशन आफ इंडिया (स्विमेड) की ग्वालियर शाखा के सचिव संजय भार्गव,राजेन्द्र उपाध्याय व विकास हरलालका का कहना है कि अब नेत्रहीन बालिकाओं को इस खेल से जोडऩे पर विचार किया जा रहा है।

ajay sahu
gwalior
9926285100

बुधवार, 7 जुलाई 2010

साकार होगा सपना?

यह लोगों के लिए खुशखबरी हो सकती है कि मध्यप्रदेश के तीन शहरों में सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन प्रोजेक्ट स्थापित होने पर नेचुरल गैस से खाना पक सकेगा। लेकिन इसका अमल कब तक होगा। यह कहा नहीं जा सकता, अधिकारियों की मानें तो यह बहुत जल्द अमल में लाया जाएगा। अगर ऐसा होता है तो लोगों को रसोई गैस सिलेंडर प्राप्त करने के लिए इंतजार नहीं करना पड़ेगा साथ ही जब गैस खत्म हुई तब मिल सकेगी। सरकार ने मंगलवार को इस पर मुहर लगा दी है। अब देखना यह है कि यह कब तक हो सकेगा।

मंगलवार, 6 जुलाई 2010

शादी

इंडिया टीम के शेर महेन्द्र सिंह धोनी के विवाह को लेकर हल्कों में कई तरह की चर्चाएं हैं। हो भी क्यों न, देशवासियों को उनसे बहुत आशाएं हैं। आशा होना लाजिमी है, लेकिन उनकी व्यक्तिगत जिंदगी उनकी है। इसमें वे क्या करते हैं। किससे शादी करें या फिर कोई अन्य काम। हमें सवाल पूछने का कोई हक नहीं है। हां यह बात अलग है कि उन्होंने आनन- फानन में यह निर्णय लेकर उस पर अमल किया। हमें खुशी है कि उन्होंने अपना जीवनसाथी अपने बचपन के साथी को बनाया। उन्हें शादी की ढेर सारी बधाइ।

अजय साहू

बंद-बंद और बंद

बंद-बंद और बंद क्या बंद करने से महंगाई कुछ कम हुई क्या इसका असर उन जगहों पर हुआ जिनसे महंगाई कम हो सकती है। जवाब एक ही आता है नहीं। तो फिर क्यों राजनीतिक दल बंद कराने पर अड़े रहते हैं। उन्हें यह समझ नहीं आता कि बंद से क्या परेशानियां होती है। बंद के दौरान जिन लोगों को परेशानी हुई उन लोगों से बात करने पर एक ही बात निकल कर आती है कि बंद उचित नहीं है। विरोध जताने के अन्य कई तरीके हो सकते हैं। बंद से कारोबार पर असर पड़ता ही है साथ ही उन लोगों को खासा असर पड़ता है जो किसी बीमारी से ग्रसित है और वे बंद के दौरान साधनों के आभाव में अस्पताल तक नहीं पहुंच सके। खैर जो भी हो राजनेताओं को बस बहाना चाहिए, नाम कमाने का। वे किसी तरह अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं। इसका सीधा नुकसान आम जनता को होता है। राजनेताओं को चाहिए कि वे कोई कदम उठाने से पहले जनता के हितों का ध्यान रखे। सभी समझते हैं महंगाई तो बढ़ रही है, मगर इसका विरोध जताने के लिए और भी तरीके हो सकते हैं।

बुधवार, 30 जून 2010

शनिवार, 8 मई 2010

मदर डे पर सभी लिखना वालो को सलाम
अजय साहू
ग्वालियर
९९२६२८५१००

बुधवार, 10 मार्च 2010

 मै एक घर बनाना चाहता हू लेकिन कोई साथ नई देता कोई कितना भी खास हो जब काम पड़ता है तो सभी साथ छोड़ देते है
कसूर उनका नहीं है जमाना ही है  मगर....
अजय साहू 
पत्रकार
ग्वालियर
९१९९२६२८५१०० 
आईये कारवां बनायें..

subhkamanai

सभी लोगो को नव संवत्सर की हार्दिक सुभ कामने 
अजय साहू 
ग्वालियर

आईये कारवां बनायें..