रविवार, 18 जुलाई 2010

कुछ कर गुजरने की ललक हो तो सब कुछ संभव

पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, ऐसा ही कुछ मास्टर हितेन्द्र श्रीवास्तव के साथ हुआ, तीन साल की उम्र में कटोरी-चम्मच से निकाली गई धुन ने आज उसे तबला वादक बना दिया,जो देश के कई शहरों में प्रस्तुति देकर शहर व परिवार का नाम रोशन कर रहा है।

रामकृष्ण आश्रम स्कूल में कक्षा आठ में पढऩे वाला हितेन्द्र बचपन की याद ताजा करते हुए बताता है कि तबला वादन की कला उसे विरासत में नहीं मिली, तीन वर्ष की उम्र में टीवी पर गाने का दृश्य आते देख खाना खाते हाथ कटोरी-चम्मच बजाने लगा, इससे निकली धुन सुन माता-पिता को हुनर समझते देर नहीं लगी। उनके प्रोत्साहन की बदौलत ही वह आज इस मुकाम तक पहुंच सका है। चार वर्ष की उम्र में प्रशिक्षण का सिलसिला शुरू हुआ, जो आज भी जारी है।

तबला वादन के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर शहर का नाम रोशन करने वाला हितेन्द्र का सपना विख्यात तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन की तरह नाम कमाने का है, उसका कहना है कि उस मुकाम पर वह अवश्य पहुंचेगा, इसके लिए हर समय परिजनों का सहयोग मिलता है। १२ वर्षीय हितेन्द्र अभी तक देश के कई शहरों में प्रस्तुति दे चुका है, इनमें ग्वालियर के अलावा आगरा, कानपुर, भोपाल, टीकमगढ़, नई दिल्ली, लखनऊ आदि शामिल हैं। वहां लोगों द्वारा खूब सम्मान मिला, वहीं गत वर्ष अपने ही शहर ग्वालियर में बैजाताल पर हुए हेरिटेज महोत्सव में दी गई प्रस्तुति को हितेन्द्र अपने आप में अभी तक का सबसे बड़ा सम्मान मानता है।

बीते माह राष्ट्रीय बालश्री सम्मान के चयन के लिए आयोजित प्रतियोगिता में भाग ले चुके हितेन्द्र का कहना है कि अगर व्यक्ति में कुछ करने की ललक हो तो वह बहुत कुछ कर सकता है, इसके लिए न तो उम्र आड़े आती है और न ही धन। एक सवाल के जवाब में उसने कहा कि पढ़ाई के साथ रोजाना दो घंटे रियाज का समय निकाल लेता है। प्रशिक्षक मुकेश सक्सेना से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। उसकी पुलिस सेवा में जाकर समाज सेवा करने की भी तमन्ना है।

मास्टर हितेन्द्र के पिता मनोज श्रीवास्तव बताते हैं कि हितेन्द्र का हुनर बचपन में ही दिखाई दे गया था, चार वर्ष की आयु से प्रशिक्षण दिलाना शुरू किया, आजकल वह रोजाना दो घंटे रियाज करता है। इसी का नतीजा है कि आज हितेन्द्र तबला वादन के क्षेत्र में शहर का नाम रोशन कर रहा है।
ajay sahu
09926285100

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