मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

सुना है ... दिवाली आ रही है

सुना है ... दिवाली आ रही है । चारों और साफ सफाई और खरीदारी का दौर चल रहा है। हम तो बस इस इंतजार में हैं कि कब धन मिले और दिवाली की शुरूआत हो.... मगर कब तक इंतजार करते रहेंगे। दिन व दिन गुजरते जा रहे हैं और कहीं से कोई आस नहीं दिख रही है। लेकिन बिना धन के दिवाली.. ये कैसे संभव है फिर मन में ख्याल आता है कि हम तो उन लोगों से काफी बेहतर है जो दो जून की रोटी के लिए रोज मशक्कत करते हैं। वो भी तो दिवाली मनाते हैं। बस यही सोचकर लगता है कि जब वे बिना धन के दिवाली मना सकते हैं तो हम क्यों नहीं। हम तो यह सब सोचकर मन को तसल्ली दे देते हैं मगर उन्हें कौन समझाए जो हमसे जुड़े हैं। हर साल की तरह इस साल भी खुशियों के आने का इंतजार है... बस इंतजार और इंतजार