शनिवार, 10 जुलाई 2010

लोगों तक पहुंचे टप्पा गायकी

शहर में जन्मी एक कलाकार टप्पा गायकी को देश विदेश में पहचान दिलाने के प्रयास में लगी है। इस कार्य में उसे काफी हद तक सफलता मिली है और यही कारण है कि विदेश में उसकी गायकी को सराहा जा रहा है।


टप्पा गायकी के क्षेत्र में पहचान रखने वाली शाश्वति मंडल पॉल ने बताया कि टप्पा गायकी आम लोगों तक पहुंच सके, इसके प्रयास लगातार जारी हैं। हाल में उनकी एलबम शाशा टप्पा ए जर्नी का लंदन में जारी हुई है, इसे लंदन की प्रसिद्ध सांग लाइंन्स वल्र्ड म्यूजिक अवार्ड 2009 में दो श्रेणी बेस्ट न्यू कमर एवं बेस्ट आर्टिस्ट के लिए नामांकित किया है। इसके अलावा इस एलबम को सांग लाइन्स पत्रिका व हालैंड रेडियो द्वारा 5 स्टार रैकिंग प्रदान किया है।

ग्वालियर में पली गायिका शाश्वति का कहना है कि सफलता में मां कमल मंडल व मामा श्रीराम उमड़ेकर का सहयोग है। इसके अलावा बाला साहब पूंछ वाले से इस विधा में प्रशिक्षण प्राप्त किया। वे कहती हैं कि अगर व्यक्ति में कुछ करने का हौसला हो तो उसके लिए असंभव नाम का कोई शब्द है ही नहीं। बस प्रोत्साहित करने की जरुरत है।

टप्पा गायकी को देश विदेश में फैलाने में लगी शाश्वति कहती हंै कि उनके द्वारा देश के लगभग सभी शहरों में प्रस्तुति दी जा चुकी है लेकिन पुणे में आयोजित सवाई गर्धव समारोह में दी प्रस्तुति आज भी याद है। एक प्रश्न के उत्तर में कहती हैं कि यूं तो कई पुरस्कार मिले लेकिन स्कूली दिनों में मिला मप्र कोकिला सम्मान आज भी याद है। इसके अलावा कई....

वर्ष 1988 में टप्पा सीखने के लिए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्राप्त कर चुकी शाश्वति कहती हैं कि विदेशों में जहां इस विधा को महत्व मिल रहा है लेकिन अपने देश में इस विधा को जो महत्व मिलना चाहिए वह नहीं मिल पा रहा है। होने वाले कार्यक्रमों में नामी कलाकारों को प्रस्तुति देने के लिए बुलाया जाता है जबकि हर कलाकार को मौका मिलना चाहिए ताकि वह अपनी कला को प्रस्तुत कर सके।

बीते समय की याद ताजा करते हुए शाश्वति ने बताया कि घर में शुरू से संगीत का माहौल था, मां कमल मंडल संगीत सीखने पर जोर देती थी, सिर्फ रियाज चलता था। यही कारण है कि वे आज इस मुकाम तक पहुंच सकी हैं।

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