शनिवार, 4 सितंबर 2010

सम्मान या फिर अपमान


टीचर्स डे यानि शिक्षकों का दिन, हो भी क्यों न आखिर वे समाज को नई दिशा देने का काम करने के साथ-साथ होनहारों को उनके मुकाम तक पहुंचाने में एक महती भूमिका जो निभाते हैं। यहां सवाल यह उठता है कि क्या वाकई में आज के स्टूडेंट्स शिक्षकों का सम्मान करते हैं। अगर तह तक जाएं तो नई बातें निकलकर सामने आएंगी। स्टूडेंट्स को बेहतर दिशा देने की कोशिश करने वाला टीचर्स आखिर उनका दुश्मन बन ही जाता है। कारण है सही दिशा देने की कोशिश, लेकिन आज का स्टूडेंट्स टीचर्स की इन सब बातों को फिजूल ही मानता है, जब टीचर्स सही राह दिखाने का प्रयास करता है तब शुरू होता विरोध का दौर, यह विरोध लगातार बढ़ता रहता है, साल में एक बार आने वाले टीचर्स डे पर स्टूडेंट्स टीचर्स का सम्मान तो करते हैं लेकिन मजबूरी या बेमन से। स्कूल में पढ़ाई करना है तो टीचर्स डे पर उनका सम्मान करना ही पड़ेगा। इस दिन क्या यह उनका वाकई में सम्मान है या अपमान, सोचने वाली बात है। विचार मंथन करना होगा।
जय हिंद
अजय साहू

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