जो घट रहा है वह जरूरी नहीं कि सही रूप में लोगों के सामने परोसा जाए, इसलिए मैं तो जो देखता हूं बस मन में आता है लिख देता हूं बस, लोगों को जो भी लगे। अच्छा या बुरा। बस लिखता जाता हूं ओर लिखता
रविवार, 28 दिसंबर 2008
जब किसी से
जब किसी से कोई गिला रखना सामने अपने आईना रखना यूं उजालों से वास्ता रखना शमा के पास ही हवा की तामिर चाहे जैसी होइसमें रोने की कुछ जगह रखनामिलना जुलना जहा ज़रूरी हो मिलने ज़ुलने का हौसला रखना
2 टिप्पणियां:
bahut khobsurat likha hai
bahut khub!sundar or stik
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