जो घट रहा है वह जरूरी नहीं कि सही रूप में लोगों के सामने परोसा जाए, इसलिए मैं तो जो देखता हूं बस मन में आता है लिख देता हूं बस, लोगों को जो भी लगे। अच्छा या बुरा। बस लिखता जाता हूं ओर लिखता
रविवार, 14 दिसंबर 2008
आधा आकाश
हम आधा आकाश मंगातें हैं अपने एक खास मंगातें हैं । अंधेरों को चीर के रख दें,ऐसा एक प्रकाश मंगातें हैं हम आधा आकाश मांगता है
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