जो घट रहा है वह जरूरी नहीं कि सही रूप में लोगों के सामने परोसा जाए, इसलिए मैं तो जो देखता हूं बस मन में आता है लिख देता हूं बस, लोगों को जो भी लगे। अच्छा या बुरा। बस लिखता जाता हूं ओर लिखता
शुक्रवार, 2 जनवरी 2009
चाँद सूरज
चाँद सूरज जिस तरह एक झील में उतरतें हैं मैंने तुम्हे देखा नही कुछ नक्श से उभरते हैं वायदों को तोड़ती है एक बार ही ये जिन्दगी कुछ लोग हें मेरी तरह फ़िर एतबार करते हें अमृता प्रीतम
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