गुरुवार, 30 दिसंबर 2010
बुधवार, 29 दिसंबर 2010
अपने ही गैर होने चले
सोचा था कि अपने साथ देंगे, और दिया भी , कुछ अपनों ने टांग खींचने की कोशिश भी की, उन्हें कामयाबी भी मिली, मगर मैं अपने रास्ते चलता ही चला जा रहा हूं। कोई कितनी भी रुकावट डालने की कोशिश करे, मगर एक मस्त हाथी की चाल मैं अपनी मंजिल की ओर बढ़ता ही जा रहा हूं। जिन पर विश्वास किया अब वे ही धोखा देने लगे हैं, सवाल यह उठता है क्या यह सही है। उनकी नजरों में तो यह बिल्कुल सही है और हो भी क्यों न , सबका अपना-अपना नजरिया होता है। खैर यह सब कब तक चलता रहेगा, कभी तो सुबह होगी.....
अजय साहू
९९६२६८५१००
अजय साहू
९९६२६८५१००
रविवार, 5 दिसंबर 2010

ajay sahu
gwalior 9926285100
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